Wednesday, August 10, 2011

प्रार्थना


हे रब किसी से छीन कर मुझको ख़ुशी न दे
जो दूसरों को बख्शी को बो जिंदगी न दे

तन दिया है मन दिया है और जीवन दे दिया
प्रभु आपको इस तुच्छ का है लाखों लाखों शुक्रिया

चाहें दौलत हो ना हो कि पास अपने प्यार हो
प्रेम के रिश्ते हों सबसे ,प्यार का संसार हो

मेरी अर्ध्य है प्रभु आपसे प्रभु शक्ति ऐसी दीजिये
मुझे त्याग करूणा प्रेम और मात्रं भक्ति दीजिये 

तेरा नाम सुमिरन मुख करे कानों से सुनता रहूँ
करने को  समर्पित पुष्प मैं हाथों से चुनता रहूँ

जब तलक सांसें हैं मेरी ,तेरा दर्श मैं पाता रहूँ 
ऐसी  कृपा  कुछ कीजिये तेरे द्वार मैं आता रहूँ

काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना

 


Monday, August 8, 2011

भ्रष्टाचार







बीसबीं सदी के पुर्बाध में
भूतकाल के शुष्क धरातल पर 
जब हमारें पुर्बजों ने 
भबिष्य की आबश्यक्तायों की   पूर्ति के लिए 
अपने देश में   आयत करके
भ्रष्टाचार का एक बीज रोपा था 
इस बिश्बास के साथ कि
आगे आने बाले समय  में 
नयी पीढ़ियों का जीवन सुखद सरल एबम सफल होगा
किन्तु इस आशंका से
बे भयाक्रांत ब्याकुल एबम चिंतित थे
कि कहीं
धर्मनिरपेछ्ता ,सदाचार ,साम्प्रदयिक सदभाब 
कर्तब्यनिष्टा ,देशप्रेम,नामक घातक प्रहारों से
निति निर्माताओं, रहनुमाओं एबम  राजनेताओं के द्वारा
उसकी असामयिक हत्या ना कर दी जाये
किन्तु  उनकी ये आशंका
निर्मूल ,निरर्थक ,बेअसर साबित हुयी
जब बीसबीं सदी के उतरार्ध में
उनके बच्चों ने  जिसमें
चिकित्सक ,अध्यापक ,एबम राजनेता
लेखक पत्रकार और अभिनेता
बैज्ञानिक ,धर्मगुरु ,क्रेता बिक्रेता 
सभी ने  एक साथ मिलकर
अपने अथक प्रयासों से
ब्रक्ष  के फलने फूलने में बराबर का योगदान दिया
आज कल हम सब ने
घर्र्र्ना स्वार्थ नफ़रत हिंसा एबम दहशत का बाताबरण
तैयार कर  के 
हत्या ,राहजनी एबम लूटपाट 
अपहरण ,आतंकबाद  और  मारकाट नामक 
उत्प्रेरकों कि उपस्थिति से 
आर डी एक्स ,ऐ के सैतालिस नामक
उन्नत तकनीकी सयंत्रों के   सयोंग से
धर्म ,शिक्षा, राजनीतिएबम खेलों में
भ्रष्टाचार के पौधे को चरम सीमा तक
पुष्पित पल्लिबत होने दिया है
हमें बिश्बास है कि
ईकीसबी सदी   में भी
हमारे बच्चे पूरी कोशिश करेंगें
ताकि ये ब्रक्ष फलता फूलता रहे
और अगर इसी तरह से ये कोशिश जारी रही
तो बह दिन दूर नहीं 
जब गली -गली ,  शहर- शहर ,घर -घर में 
इसका युद्ध स्तर पर ब्यब सायिक उत्पादन शुरू होगा 
और उस दिन हम ,तब 
भ्रष्टाचार के फल फूल बीज  को 
पुरे संसार में निर्यात कर सकेंगें 
उस पल पूरा संसार 
भ्रष्टाचार  को पाने के लिए 
आश्रित रहेगा 
हम   पर और सिर्फ हम पर


 प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना











Thursday, July 28, 2011

मेरा मन सोचता है कि भूकंप क्यों आते हैं





























कुछ रोज पूर्ब जब आया भूकंप 
अचानक प्राकतिक दुर्घटना घटी
उसी पल जमीन फटी
सजे सम्भरें सुसज्जित गृह खँडहर में बदल गये
शमशान गृह में ही सारे शहर ही बदल गये
मेरा मन सोचता है कि

ये चुपचाप सा लेता हुआ युबा कौन  है
क्या सोचता है और क्यों मौन है
ये शायद अपनें बिचारों में खोया है 
नहीं नहीं लगता है ,ये सोया है
इसे लगता नौकरी कि तलाश है 
अपनी योग्यता का इसे बखूबी एहसास है 
सोचता था कि कल सुबह जायेंगें 
योग्यता के बल पर उपयुक्त पद पा जायेंगें 
पर अचानक जब आया भूकंप 
मन कि आशाएं बेमौसम ही  जल गयीं 
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी
मेरा मन सोचता है कि
ये बृद्ध पुरुष किन विचारों में खोया है
आँखें खुली हैं किन्तु लगता है सोया है
इसने सोचा था कि
कल जब  अपनी बेटी का ब्याह होगा
बर्षों से संजोया सपना तब पूरा होगा
उसे अपने ही घर से
अपने पति के साथ जाना होगा
अपने बलबूते पर घर को स्वर्ग जैसा बनाना होगा
पर अचानक जब आया भूकंप
मन कि आशाएं बेमौसम ही  जल गयीं 
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी
मेरा मन सोचता है कि
ये बालक तो अब बिलकुल मौन है
इस बच्चे का संरछक न जाने कौन है
लगता है कि
मा ने बेटे को प्यार से बताया है
बेटे को ये एतबार भी दिलाया है
कल जब सुबह होगी 
सूरज दिखेगा और अँधेरा मिटेंगा
तब हम बाहर जायेंगें 
और तुम्हारे लिए 
खूब सारा दूध ले आयेंगें 
शायद इसी एहसास में 
दूध मिलने कि आस में 
चुपचाप सा मुहँ खोले सोया है 
शांत है और अब तलक न रोया है 
पर अचानक जब आया भूकंप 
मन कि आशाएं बेमौसम ही  जल गयीं 
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी

मेरा मन सोचता है कि  
ये नबयौब्ना चुपचाप क्यों सोती है 
न मुस्कराती है और न रोती है 
सोचा था कि ,कल जब पिया आयेंगें
बहुत दिनों के बाद मिल पायेंगें
जी भर के उनसे बातें करेंगें
प्यार का एहसास साथ साथ करेंगें
पर अचानक जब आया भूकंप
मन कि आशाएं बेमौसम ही  जल गयीं 
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी

मेरा मन सोचता है कि 
आखिर क्यों ?
युबक ,बृद्ध पुरुष ,बालक,नबयौबना पर
अचानक ये कौन सा कहर  बरपा है 
किन्तु इन सब बातों का
किसी पर भी, कुछ नहीं हो रहा असर
बही रेडियो ,टीवी का संगीतमय शोर 
घृणा ,लालच स्वार्थ की आजमाइश और जोर
मलबा ,टूटे हुयें  घर ,स्त्री पुरुषों की धेर सारी  लाशें
बिखरतें हुयें सपनें और सिसकती हुईं आसें
इन सबको देखने और सुनने के बाद  
भोगियों को दिए गये बही खोखले बादे
अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिये
 कार्य करने के इरादे
बही नेताओं के जमघतो का मंजर
आश्बास्नों में छिपा हुआ घातक सा खंजर

मेरा मन सोचता है कि
आखिर  ऐसा क्यों हैं कि
क्या इसका कोई निदान नहीं है
आपसी बैमन्सय नफरत स्वार्थपरता को देखकर
एक बार फिर अपनी धरती माँ कापें
इससे पहले ही हम सब 
आइए 
हम सब आपस में साथ हो
भाईचारे प्यार कि आपस में बात हो 
ताकि  
युबक ,बृद्ध पुरुष ,बालक,नबयौबना 
सभी के सपनें और पुरे अरमान हों 
सारी धरती पर फिर से रोशन जहान हो ....... 

   
 प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना






 


Tuesday, July 26, 2011

अर्थ का अनर्थ















एक रोज  हम  यूँ ही बृन्दावन गये
भगबान कृष्ण हमें बहां मिल गये
भगवान बोले ,बेटा मदन क्या हाल है ?
हमने कहा दुआ है सब मालामाल हैं 

कुछ देर बाद  हमने एक सवाल कर दिया 
भगवान बोले तुमने तो बबाल कर दिया 
सवाल सुन करके बो कुछ  लगे सोचने
मालूम चला ,लगे कुछ बह खोजने


हमने उनसे  कहा ,ऐसा तुमने क्या किया ?
जिसकी बजह से इतना नाम कर लिया
कल तुमने जो किया था ,बह ही आज हम कर रहे
फिर क्यों लोग ,हममें तुममें भेद कर रहे 


भगवान बोले प्रेम ,कर्म का उपदेश दिया हमनें
युद्ध में भी अर्जुन को सन्देश दिया हमनें
जब कभी अपनों ने हमें दिल से है पुकारा
हर मदद की उनकी ,,दुष्टों को भी संहारा 


मैनें उनसे कहा ,सुनिए ,हम कैसे काम  करते है
करता काम कोई है हम अपना  नाम  करते हैं 
देखकर के दूसरों की माँ बहनों को ,हम अपना बनाने की सोचा करते
इसी दिशा में सदा कर्म किया है, कल क्या होगा ,ये ना सोचा करते 


माता पिता मित्र सखा आये कोई भी 
किसी भी तरह हम डराया करते 
साम दाम दण्डं भेद किसी भी तरह 
रूठने से उनको मनाया करते 


बात  जब फिर भी नहीं है बनती 
कर्म कुछ ज्यादा हम किया करतें 
सजा दुष्टों को हरदम मिलती रहे 
ये सोचकर कष्ट हम दिया करते 

मार काट लूट पाट हत्या राहजनी 
अपनें हैं जो ,मर्जी हो बो करें
कहना तो अपना सदा से ये है
पुलिस के दंडें से फिर क्यों डरे 

धोखे से जब कभी बे पकड़े गए
पल भर में ही उनको छुटाया करते
जब अपनें है बे फिर कष्ट क्यों हो
पल भर में ही कष्ट हम मिटाया करते

ये सुनकर के भगबान कहने लगे
क्या लोग दुनियां में इतना सहने लगे
बेटा तुने तो अर्थ का अनर्थ कर दिया
ऐसे कर्मों से जीवन अपना ब्यर्थ कर दिया 

तुमसे कह रहा हूँ मैं हे पापी मदन 
पाप अच्छे कर्मों से तुमको डिगाया करेंगें  
दुष्कर्मों के कारण हे पापी मदन 
हम तुम जैसों को फिर से मिटाया करेंगें 

  
   
 
प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना
      
     


Wednesday, June 29, 2011

नज्म




मेरे  हमनसी  मेरे दिलबर अपने प्यार का पता दे
तू दूर क्यों है हमसे इतना जरा पता दे 
तेरे प्यार के ही खातिर ,दुनियां बसायी मैनें
तेरे प्यार को ही पाकर महफ़िल सजाई मैनें

जितने भी गम थे मेरे उनको मैं भूलता था
मेरी दिलरुबा मेरे दिलबर तुमको ही पूजता था
मंजूर  क्या खुदा को ये जान मैं न पाता
जो जान से  है प्यारा बह दूर होता  जाता

मेरे दिल की बस्ती सुनी तू अब तो दिल में आ जा
तेरी चाहत में जीयें हम तू छोड़कर अब न  जा
सूरज से है तू सुन्दर चंदा से दिखती प्यारी
दुनियां में जितने दीखते उन सबमें तू है न्यारी

तुम से दूर रहकर दिलवर जीते जी मर रहे हैं
क्या खता है मेरी ये सोच डर रहे  हैं 
दुनियां है मेरी सूनी दिल में भी हैं अँधेरा 
जो कुछ भी कल था अपना बह अब रहा न मेरा

मेरे  हमनसी  मेरे दिलबर अपने प्यार का पता दे
तू दूर क्यों है हमसे इतना जरा पता दे 



काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना