Tuesday, January 22, 2013

मुक्तक (जान)

















ये जान जान कर जान गया ,ये जान तो मेरी जान नहीं
जिस जान के खातिर  जान है ये, इसमें उस जैसी शान नहीं

जब जान बो मेरी चलती   है ,रुक जाते हैं चलने बाले
जिस जगह पर उनकी नजर पड़े ,थम जाते हैं  मय के प्याले 


मुक्तक प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

12 comments:

  1. जानदार
    जानराय ||

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    1. प्रोत्साहन के लिए आपका हृदयसे आभार . सदैव मेरे ब्लौग आप का स्वागत है .

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    1. प्रोत्साहन के लिए आपका हृदयसे आभार .

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  3. वाह .. जान जान कर जान गया ...
    कमाल का मुक्तक है जी ... जाना पहचाना कुछ कुछ अनजाना ...

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    1. प्रोत्साहन के लिए आपका हृदयसे आभार .

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  4. वाह! बहुत सुन्दर...

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    1. अनेकानेक धन्यवाद सकारात्मक टिप्पणी हेतु.

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