Thursday, January 31, 2013

प्रीत





 









प्रीत



नज़रों ने नज़रों से नजरें मिलायीं 
प्यार मुस्कराया और प्रीत मुस्कराई 

प्यार के तराने जगे गीत गुनगुनाने लगे 
फिर मिलन की ऋतू  आयी भागी तन्हाई 

दिल से फिर दिल का करार होने लगा 
खुद ही फिर खुद से क्यों प्यार होने लगा 

नज़रों ने नज़रों से नजरें मिलायीं 
प्यार मुस्कराया और प्रीत मुस्कराई 


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

11 comments:

  1. दिल के रिश्‍तों से सम्‍बन्धित आपकी कविताई लाजवाब है।

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    1. अनेकानेक धन्यवाद टिप्पणी हेतु.

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  2. बहुत खूब, सुन्दर रचना
    सादर !

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  3. वाह....
    अति सुन्दर रचना...
    :-)

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  4. sunder neh se bhari rachna
    shubhkamnayen

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  5. नज़रों ने नज़रों से नजरें मिलायीं
    प्यार मुस्कराया और प्रीत मुस्कराई ..

    वाह क्या बात है ... प्रीत मुस्कुराती रहे हमेशा ...

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    1. आपकी प्रतिक्रिया से संबल मिला - हार्दिक धन्यवाद

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  6. awesome post .... very well written & fabulous as always
    plz . visit -http://swapniljewels.blogspot.in/2013/01/a-kettle-of-glitters.html

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    1. आप का बहुत शुक्रिया होंसला अफजाई के लिए.

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