Monday, February 4, 2013

नज़राना















नज़राना



अपना दिल कभी था जो, हुआ है आज बेगाना
आकर के यूँ चुपके से, मेरे दिल में जगह पाना
दुनियां में तो अक्सर ही ,संभल कर लोग गिर जाते
मगर उनकी ये आदत है की गिरकर भी सभल जाना

आकर पास मेरे फिर धीरे से यूँ मुस्काना
पाकर पास मुझको फिर धीरे धीरे शरमाना
देखा तो मिली नजरें फिर नजरो का झुका जाना
ये उनकी ही अदाए हैं  मुश्किल है कहीं पाना

जो बाते रहती दिल में है ,जुबां पर भी नहीं लाना
बो लम्बी झुल्फ रेशम सी और नागिन सा लहर खाना
बो नीली झील सी आँखों में दुनियां का नजर आना
बताओ तुम कि  दे दूँ क्या ,अपनी नजरो को मैं नज़राना ......




प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना



6 comments:

  1. मगर उनकी ये आदत है की गिरकर भी सभल जाना-

    बहुत बढ़िया आदरणीय मदन जी-
    शुभकामनायें ||

    ReplyDelete
  2. प्रेम का आपका खयाल और फलस्‍वरुप ऐसे भाव, सुन्‍दर।

    ReplyDelete
  3. बहुत ही सुन्दर रचना...
    सुन्दर....
    :-)

    ReplyDelete
    Replies
    1. आप का बहुत शुक्रिया होंसला अफजाई के लिए.

      Delete