Monday, February 11, 2013

मुक्तक (आदत)






















मयखाने की चौखट को कभी मदिर न समझना तुम
मयखाने जाकर पीने की मेरी आदत नहीं थी
चाहत से जो देखा मेरी ओर उन्होंने
आँखों में कुछ छलकी मैंने थोड़ी पी थी



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

3 comments:

  1. आभार आदरणीय-
    थोडा और स्पष्ट कीजिये-
    कुछ अखर रहा है -
    कृपया एक बार और देख लीजिये-
    संकोच के साथ-सादर-

    ReplyDelete
  2. अब उनकी नज़र का कसूर हो गया ... जो अंकों ने छलका दी ...
    क्या बात है ...

    ReplyDelete