Thursday, March 14, 2013

नजरिया


















नजरिया

मिली दौलत ,मिली शोहरत,मिला है मान उसको क्यों
मौका जानकर अपनी जो बात बदल जाता है .

किसी का दर्द पाने की तमन्ना जब कभी उपजे
जीने का नजरिया फिर उसका बदल जाता है  ..

चेहरे की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा है
तन्हाई के आलम में ये अक्सर बदल जाता है ...

किसको दोस्त माने हम और किसको गैर कह दें हम
 जरुरत पर सभी का जब हुलिया बदल जाता है ....

दिल भी यार पागल है ना जाने दीन दुनिया को
किसी पत्थर की मूरत पर अक्सर मचल जाता है .....

क्या बताएं आपको हम अपने दिल की दास्ताँ
जितना दर्द मिलता है ये उतना संभल जाता है ......



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

8 comments:

  1. हैट्स ऑफ टु यू मदन जी। बहुत ही सुन्‍दर पंक्तियां। राजनेताओं और तंत्रसंभालकर्ताओं पर बहुत ही सार्थक पंक्तियां लिखीं हैं आपने। आपकी शायरी का जवाब नहीं। अपना सा भाव और जज्‍बात लगती है आपकी शायरी।

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  2. बहुत बढ़िया आदरणीय -
    आक्रोश को सलाम-

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  3. bahut hi sundar sir....mere blog par aane ke liye dhanyavaad

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  4. बेहतरीन पंक्तियां है मदन जी .....

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  5. दिल भी यार पागल है ना जाने दीन दुनिया को
    किसी पत्थर की मूरत पर अक्सर मचल जाता है ..

    वाह लया बात है मदन जी ... दिल तो ऐसा ही होता है ...
    खूबसूरत शेर ...

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  6. वाह बहुत खूब कहा .....क्या बताएं आपको हम अपने दिल की दास्ताँ
    जितना दर्द मिलता है ये उतना संभल जाता है .....वाह |

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