Thursday, June 20, 2013

कुदरत का कहर

पहले का मंदिर का चित्र




फिर एक बार कुदरत का कहर 
फिर एक बार मीडिया में शोर 
फिर एक बार नेताओं का हवाई दौरा 
फिर एक बार दानबीरों की कर्मठता 
 फिर एक बार प्रशाशन का  कुम्भकर्णी नींद से जागना
फिर एक बार 
मन में कौंधता
अनुत्तरित प्रश्न 
आखिर ये कब तक 
हम चेतेंगें भी या नहीं 
आखिर 
जल जंगल जमीन की अहमियत कब जानेगें?




अभी का मंदिर का चित्र


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

8 comments:

  1. सब कुछ यही होने वाला है !!

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  2. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति

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  3. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति

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  4. सच कहा है आपने ... इंसान तब जागेगा जब खत्म होने के कगार पे होगा ...

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  5. बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

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  6. सामयिक और सटीक प्रस्तुति ।
    चेतने के लिये बदलाव लाना होगा । स्वार्थी लोगों को हटाना होगा ।

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  7. यथार्थपुरक और सटिक हमारे आज पर ।

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