Thursday, March 7, 2013

चार पल











चार पल

कभी गर्दिशों  से दोस्ती कभी गम से याराना हुआ
चार पल की जिन्दगी का ऐसे  कट जाना हुआ..

इस आस में बीती उम्र कोई हमे अपना कहे .
अब आज के इस दौर में ये दिल भी बेगाना हुआ

जिस रोज से देखा उन्हें मिलने लगी मेरी नजर
आखो से मय  पीने लगे मानो की मयखाना हुआ

इस कदर  अन्जान हैं  हम आज अपने हाल से
हमसे मिलकरके बोला आइना ये शख्श बेगाना हुआ

ढल नहीं जाते हैं  लब्ज यूँ ही रचना में कभी
कभी ग़ज़ल उनसे मिल गयी कभी गीत का पाना हुआ


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना