Thursday, July 28, 2016

आज हम फिर बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की


 



नरक की अंतिम जमीं तक गिर चुके हैं  आज जो
नापने को कह रहे , हमसे बह दूरियाँ आकाश की

आज हम महफूज है क्यों दुश्मनों के बीच में
आती नहीं है रास अब दोस्ती बहुत ज्यादा पास की

बँट  गयी सारी जमी ,फिर बँट  गया ये आसमान
आज  हम फिर  बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की

हर जगह महफ़िल सजी पर दर्द भी मिल जायेगा
अब हर कोई कहने लगा है  आरजू बनवास की

मौत के साये में जीती चार पल की जिंदगी
क्या मदन ये सारी दुनिया, है बिरोधाभास की

 

आज  हम फिर  बँट गए ज्यों गड्डियां हो तास की

मदन मोहन सक्सेना