Friday, September 7, 2012

मुक्तक




















ख़यालों  में  बो मेरे आते भी हैं
रातो को नीदें   चुराते   भी हैं 
कहतें नहीं राज दिल का  बह  हमसे  
चोरी से    नजरे  मिलातें  भी हैं


मुक्तक प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना

Monday, September 3, 2012

मुक्तक




अनोखा  प्यार का बंधन इसे तुम तोड़ न देना
पराया जान कर हमको अकेला छोड़ न देना
रहकर दूर तुमसे हम जीयें तो बो सजा होगी 
न पायें गर तुम्हें दिल में तो ये मेरी ख़ता होगी 


मुक्तक  प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना 

तमन्ना (मुक्तक)






दिल में जो तमन्ना है जुबां से हम न कह पाते 
नजरो से हम कहतें हैं अपने दिल की सब बातें 
मुश्किल अपनी ये है की   समझ बह कुछ नहीं पातें
पिघल कर मोम हो जाता यदि पत्थर को समझाते  



मुक्तक प्रस्तुति: 
मदन मोहन सक्सेना 

Wednesday, August 8, 2012

मुक्तक








रूठ कर ना  जा मेरा दिल तोड़ने  बाले
पराया जानकार हमको अकेला छोड़ने बाले
मासूम सी ख़ता पर नाराज हो गए
इजहार राज ऐ  दिल पर ही आबाज  हो गए 


मुक्तक प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना

Thursday, July 19, 2012

मुक्तक




बो जानेमन जो मेरे है बो मेरे मन ओ ना जाने
अदाओं की तो उनके हम हो चुके  है दीवाने 

बो जानेमन जो मेरे है बह दिल में यूँ समा जा
इनायत मेरे रब  करना   न उनसे  दूर हो पायें




मुक्तक प्रस्तुति: 
मदन मोहन सक्सेना 

ग़ज़ल

 

 

 

  

आगमन नए दौर का आप जिसको कह रहे
बो सेक्स की रंगीनियों की पैर में जंजीर है

सुन चुके है बहुत किस्से वीरता पुरुषार्थ के
हर रोज फिर किसी द्रौपदी का खिंच रहा क्यों चीर है

खून से खेली है होली आज के इस दौर में
कह रहे सब आज ये नहीं मिल रहा अब नीर है

मौत के साये में जीती चार पल की जिन्दगी
ये ब्यथा अपनी नहीं हर एक की ये पीर है

आज के हालत में किस किस से हम बचकर चले
प्रशं लगता है सरल पर ये बहुत गंभीर है

चाँद रुपयों की बदौलत बेचकर हर चीज को
आज हम आबाज देते की बेचना जमीर है 



ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

 

Monday, July 9, 2012

मुक्तक







इनायत जब खुदा की हो तो बंजर भी चमन होता
खुशियाँ  रहती दामन में और जीवन में अमन होता 

मर्जी बिन खुदा यारों तो जर्रा भी नहीं हिलता 
अगर बो रूठ जाए तो मुयस्सर न कफ़न होता 

मुक्तक प्रस्तुति: 
मदन मोहन सक्सेना 

Friday, June 1, 2012

गीत




अपना दिल कभी था जो, हुआ है आज बेगाना
आकर के यूँ चुपके से, मेरे दिल में जगह पाना 
दुनियां में तो अक्सर ही ,सभल कर लोग गिर जाते 
मगर उनकी ये आदत है की  गिरकर भी सभल जाना

आकर पास मेरे फिर धीरे से यूँ मुस्काना
पाकर पास मुझको फिर धीरे धीरे शरमाना
देखा तो मिली नजरें फिर नजरो का झुका जाना 
ये उनकी ही अदाए  है  मुश्किल है कहीं पाना

जो बाते रहती दिल में है ,जुबां पर भी नहीं लाना
बो लम्बी झुल्फ रेशम सी और नागिन सा लहर खाना
बो नीली झील सी आँखों में दुनियां का  नजर आना
बताओ तुम दे दू क्या ,अपनी नजरो को मैं नज़राना




काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना
   

Wednesday, May 23, 2012

मुक्तक






रोता  नहीं है कोई भी किसी और  के लिए
सब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते हैं

प्यार की दौलत को कभी छोटा न समझना तुम
होते है बदनसीब ,जो पाकर इसे खोते हैं  


मुक्तक प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना 

Wednesday, August 10, 2011

प्रार्थना


हे रब किसी से छीन कर मुझको ख़ुशी न दे
जो दूसरों को बख्शी को बो जिंदगी न दे

तन दिया है मन दिया है और जीवन दे दिया
प्रभु आपको इस तुच्छ का है लाखों लाखों शुक्रिया

चाहें दौलत हो ना हो कि पास अपने प्यार हो
प्रेम के रिश्ते हों सबसे ,प्यार का संसार हो

मेरी अर्ध्य है प्रभु आपसे प्रभु शक्ति ऐसी दीजिये
मुझे त्याग करूणा प्रेम और मात्रं भक्ति दीजिये 

तेरा नाम सुमिरन मुख करे कानों से सुनता रहूँ
करने को  समर्पित पुष्प मैं हाथों से चुनता रहूँ

जब तलक सांसें हैं मेरी ,तेरा दर्श मैं पाता रहूँ 
ऐसी  कृपा  कुछ कीजिये तेरे द्वार मैं आता रहूँ

काब्य प्रस्तुति :   
मदन मोहन सक्सेना