Thursday, October 31, 2013

धनतेरस का पर्ब (परम्पराओं का पालन या रहीसी का दिखाबा )


धनतेरस का पर्ब (परम्पराओं का पालन या रहीसी का दिखाबा )







आज   यानि शुक्रबार ,दिनांक नवम्बर एक दो हज़ार तेरह को पुरे भारत बर्ष में धनतेरस मनाई जायेगी। सबाल ये है कि आज के समय में कितनी जरुरत है धनतेरस को मनाने की।रीति रिवाजों से जुडा धनतेरस आज व्यक्ति की आर्थिक क्षमता का सूचक बन गया है। एक तरफ उच्च और मध्यम वर्ग के लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते हैं तो दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोग जरूरत की वस्तुएं खरीद कर धनतेरस का पर्व मनाते हैं। इसके बावजूद वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोग अपनी परम्परा को नहीं भूले हैं और अपने सामर्थ्य के अनुसार यह पर्व मनाते हैं।धनतेरस के दिन सोना, चांदी के अलावा बर्तन खरीदने की परम्परा है। इस पर्व पर बर्तन खरीदने की शुरुआत कब और कैसे हुई, इसका कोई निश्चित प्रमाण तो नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि जन्म के समय धन्वन्तरि के हाथों में अमृत कलश था। इस अमृत कलश को मंगल कलश भी कहते हैं और ऐसी मान्यता है कि देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने इसका निर्माण किया था। यही कारण है आम जन इस दिन बर्तन खरीदना शुभ मानते हैं।  
आधुनिक युग की तेजी से बदलती जीवन शैली में भी धनतेरस की परम्परा आज भी कायम है और समाज के सभी वर्गों के लोग कई महत्वपूर्ण चीजों की खरीदारी के लिए पूरे साल इस पर्व का बेसब्री से इंतजार करते हैं।  हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी केदिन धन्वतरि त्रयोदशी मनायी जाती है। जिसे आम बोलचाल में 'धनतेरस' कहा जाता है। यह मूलत: धन्वन्तरि जयंती का पर्व है और आयुर्वेद के जनक धन्वन्तरि के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है।          
आने वाली पीढियां अपनी परम्परा को अच्छी तरह समझ सकें। इसके लिए भारतीय संस्कृति के हर पर्व से जुडी कोई न कोई लोक कथा अवश्य है। दीपावली से पहले मनाए जाने वाले धनतेरस पर्व से भी जुडी एक लोककथा है, जो कई युगों से कही, सुनी जा रही है।  पौराणिक कथाओं में धन्वन्तरि के जन्म का वर्णन करते हुए बताया गया है कि देवता और असुरों के समुद्र मंथन से धन्वन्तरि का जन्म हुआ था। वह अपने हाथों में अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे। इस कारण उनका नाम पीयूषपाणि धन्वन्तरि विख्यात हुआ। उन्हें विष्णु का अवतार भी माना जाता है।            
परम्परा के अनुसार धनतेरस की संध्या को मृत्यु के देवता कहे जाने वाले यमराज के नाम का दीया घर की देहरी पर रखा जाता है और उनकी पूजा करके प्रार्थना की जाती है कि वह घर में प्रवेश नहीं करें और किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं। देखा जाए तो यह धार्मिक मान्यता मनुष्य के स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन से प्रेरित है।           
यम के नाम से दीया निकालने के बारे में भी एक पौराणिक कथा है, एक बार राजा हिम ने अपने पुत्र की कुंडली बनवायी। इसमें यह बात सामने आयी कि शादी के ठीक चौथे दिन सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। हिम की पुत्रवधू को जब इस बात का पता चला तो उसने निश्चय किया कि वह हर हाल में अपने पति को यम के कोप से बचाएगी। शादी के चौथे दिन उसने पति के कमरे के बाहर घर के सभी जेवर और सोने-चांदी के सिक्कों का ढेर बनाकर उसे पहाड़ का रूप दे दिया और खुद रात भर बैठकर उसे गाना और कहानी सुनाने लगी ताकि उसे नींद नहीं आए।     
रात के समय जब यम सांप के रूप में उसके पति को डंसने आए तो वह सांप आभूषणों के पहाड़ को पार नहीं कर सका और उसी ढ़ेर पर बैठकर गाना सुनने लगा। इस तरह पूरी रात बीत गई और अगली सुबह सांप को लौटना पड़ा। इस तरह उसने अपने पति की जान बचा ली। माना जाता है कि तभी से लोग घर की सुख, समृद्धि के लिए धनतेरस के दिन अपने घर के बाहर यम के नाम का दीया निकालते हैं ताकि यम उनके परिवार को कोई नुकसान नहीं पहुंचाए।       
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धन से ऊपर माना जाता रहा है। यह कहावत आज भी प्रचलित है 'पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया' इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है, जो भारतीय संस्कृति के सर्वथा अनुकूल है।  धनतेरस के दिन सोने और चांदी के बर्तन, सिक्के तथा आभूषण खरीदने की परम्परा रही है। सोना सौंदर्य में वृद्धि तो करता ही है। मुश्किल घड़ी में संचित धन के रूप में भी काम आता है। कुछ लोग शगुन के रूप में सोने या चांदी के सिक्के भी खरीदते हैं।  दौर के साथ लोगों की पसंद और जरूरत भी बदली है इसलिए इस दिन अब बर्तनों और आभूषणों के अलावा वाहन मोबाइल आदि भी खरीदे जाने लगे हैं। वर्तमान समय में देखा जाए तो मध्यम वर्गीय परिवारों में धनतेरस के दिन वाहन खरीदने का फैशन सा बन गया है। इस दिन ये लोग गाड़ी खरीदना शुभ मानते हैं। कई लोग तो इस दिन कम्प्यूटर और बिजली के उपकरण भी खरीदते हैं।             
रीति रिवाजों से जुडा धनतेरस आज व्यक्ति की आर्थिक क्षमता का सूचक बन गया है। एक तरफ उच्च और मध्यम वर्ग के लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते हैं तो दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोग जरूरत की वस्तुएं खरीद कर धनतेरस का पर्व मनाते हैं। इसके बावजूद वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोग अपनी परम्परा को नहीं भूले हैं और अपने सामर्थ्य के अनुसार यह पर्व मनाते हैं।



मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, October 29, 2013

भावनात्मक भाषण की मजबूरी

भावनात्मक भाषण की मजबूरी

 

गरीवी समस्या नहीं है बल्कि मानसिक बीमारी है
कोई इज्ज़त की बात नहीं करता है
हमारे पास छुपाने को कुछ नहीं है
मेरी दादी पिता को मार दिया
मुझे भी मार देंगें ,किन्तु मुझे डर नहीं है
ये कुछ बाक्य  हैं
जिसे हम आप अक्सर आये दिन मीडिया के माध्यम से सुनते रहते हैं
जनता सुनना चाहती हैं
कीमत नियंत्रित कैसे रहें ,इसके लिए क्या करेंगें
समाज की बेटियाँ
दरिंदों से कैसे सुरक्षित रहेंगी ,इसका क्या इंतजाम किया है
देश की सुरक्षा में लगे जबान की जिंदगी की अहमियत
कब हमें समझ आएगी
पारदर्शी प्रशासन की बात असल में
कब साकार होगी
भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए सख्त कानून कब बनेगा या नहीं भी
नेता ,ब्यापारी और संतों का गठजोड़ कभी ख़त्म होगा भी या नहीं
पाँच ,दस और पैतीस रुपये में गुजारा करने बाले आम लोग
सौ रुपये कीमत बाली प्याज कब तक
खरीदने को मजबूर रहेंगें।
युबा को राजनीती में आने की बात करने बाले
क्या ये भी बतायेंगें कि
केन्द्रीय मंत्रिमंडल में अधिकतर बुजुर्गों की संख्या
किस बजह से है।
युबा की बेहतरी के लिए क्या क्या योजना है।
देश की अबाम जानना चाहती है।





प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, October 22, 2013

इजाफ़ा




























क्या बतायें आज कल ये हाल अपना हो गया है 
पैर ढकता हूँ जब मैं, बाहर सर फिर हो गया है  .



 इजाफ़ा



आलू, टमाटर ,फल की कीमत में इजाफ़ा हो गया
इजाफ़ा होकर प्याज सौ रुपए हो गया 
दूध में प्रति लीटर दो रुपए इज़ाफा  हो गया 
पेट्रोल दस रुपए महँगा हो गया 
डीजल ,एल पी जी गैस में इजाफा हो गया 
बस ,ट्रेन और हबाई किराया में इज़ाफा किया गया 
मोबाइल कम्पनियों ने कॉल रेट में इजाफ़ा  किया 
बिजली कम्पनियों ने बिजली की दरों में इजाफ़ा कर दिया 
सेट टॉप बॉक्स की दरों में इजाफ़ा किया गया 
स्कूल फीस , कोचिंग फीस में इजाफ़ा किया गया 
आज कल आम आदमी को ये सब सुनना 
आम हो गया है।

क्या बतायें आज कल ये हाल अपना हो गया है 
पैर ढकता हूँ जब मैं, बाहर सर फिर हो गया है  .






मदन मोहन सक्सेना

Thursday, October 17, 2013

संत , स्वप्न और स्वर्ण भण्डार























संत , स्वप्न और स्वर्ण भण्डार

एक संत ने स्वप्न  देखा 
एक राजा के किले के तहखाने के अन्दर 
स्वर्ण का अपूर्ब भंडार 
संत का सपना 
कि यदि ये भंडार देश का हो जाये 
तो देश का खजाना ही नहीं भरेगा 
बल्कि  धन के अभाब में 
ना होने बाले कई कार्य हो पायेंगें 
इन कामों से जनता का भला हो पायेगा
संत का स्वप्न 
अब शासकों  का स्वप्न बन गया 
जल्दी जल्दी 
भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण हरकत में आ गया 
रातों रातों 
अनजान सा क़स्बा 
माडिया की चकाचौंद से जगमगाने लगा 
लोगो के स्वप्न भी हिलोरे मारने लगे 
कि स्वर्ण भण्डार से 
उनका भी कुछ भला हो जायेगा 
स्वर्ण की हिफाज़त के लिए 
सुरक्षा बल की तैनाती होने लगी 
जनता ,मीडिया ,संत , नेता 
सभी 
अपनी बास्तबिक परेशानियों को भूलकर
स्वप्न में मिले स्वर्ण को 
पाने के लिए  मशगूल हो गए 


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

लाचार अबाम



















मंगलबार को एक घटना देखी 
टी बी पर
समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव ने 
लोहिया ग्राम के विकास कार्यो की जांच के लिए 
शामली के अफसरों संग दौरा किया 
कार्यक्रम के दौरान बिजली के पंखों की व्यवस्था नहीं की गई
दौरे के दौरान कुछ बच्चों से पंखे से हवा कराई गई
लेकिन अफसरों ने बच्चों पर रहम नहीं किया और मस्ती में हवा खाते रहे
लखनऊ से आए वरिष्ठ अफसर को भी कुछ नजर नहीं आया
ये दर्शाता है कि 
हमारे अफसर जिनकी जिम्मेदारी है 
समाज के सुधार और ब्यबस्था चुस्त दुरुस्त करने की
कितने सम्बेदन हीन हैं 
देखा उस दिन 
मूक बने जनता के प्रतिनिधियों को
बातानुकुलित कमरों में रहने के आदी लोगों को जरा सी गर्मी में परेशानी को
सोती हुयी लाचार अबाम को 
बेलगाम अफसरशाही को 
सब कुछ करने को मजबूर गरीबी को 
सड़े गले भ्रष्ट तंत्र को 
जिसमें बचपन , आचार विचार , जबाबदेही 
की कोई हैसियत नहीं है। 



प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना




Sunday, October 13, 2013

तूफान का मुकाबला

 

















शांति से कौन रहना नहीं चाहता
या कहिये किसको शांति से रहना पसंद नहीं
पर कभी कभी
मानबीय और प्राकतिक कारणों से
शांति भंग होकर तूफान आ जाता है
अभी हाल में ही
देश के कुछ हिस्सों ने
भीषण चक्रवाती तूफान फैलिन
का अनुभव किया
मौसम बैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार ही
शनिवार रात ओडिशा के तट पर पहुंचा
इस तूफान को गत वर्षों में आया सबसे भीषण तूफान माना जा रहा है
लेकिन इससे पहले के मुकाबले तबाही काफी कम रही
क्योंकि
भारतीय मौसम बैज्ञानिकों ने
इस का सटीक अनुमान पहले से लगा लिया था
मीडिया ने भी जागरूक करने का कम किया
केंद्र सरकार की और राज्य सरकार की एजेंसियों ने
बेहतर तालमेल से
लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंच दिया

और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकार (एनडीएमए) ने बेहतर कार्य किया
संकट की इस घडी में सब ने
जिस तरह से आपसी तालमेल से तूफान का
मुकाबला किया
निसंदेह गर्ब का बिषय है
उम्मीद की जानी चाहियें कि
आने बाले कल में भी
हम सब एक रहेंगें
ताकि किसी भी तूफान का मुकाबला कर
सुख शांति से सभी भारत बासी
अपने देश में रह सकें .






प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

Thursday, October 10, 2013

सोच पर तरस















सोच पर तरस

तरस आता है
मुझे उन लोगों की सोच पर
जो लोग आंतकबादी की पहचान भी धर्म से करने लगते हैं
और
संतों के दुराचरण में भी
हिन्दू धर्म और सनातन धर्म को बीच में ले आते हैं
धर्म लोगों को
आपस में मिलजुल कर रहने की सीख देता है
आतंक ,यौनाचार
करने बाला सिर्फ
मानबता का अपराधी है
उसका कोई धर्म नहीं होता है


प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, October 1, 2013

समय समय का फेर

















 










समय समय की बात है समय समय का फेर
पशुओं को भी लग रहा देर सही ना अंधेर

बात बात पर लालूजी हँसते और मुसकाय
सजा सुनी ज्यों ही तभी दिल बैठा सा जाय

पहले लालू जी चले और पीछे चले मसूद
सख्ती से अब कोर्ट की कम होने लगा बजूद

चारा का तो हो गया कोयला का क्या होय
बोया (खाया )जैसा आपने फल भी बैसा होय

जनता की ये जीत है या भ्रष्टाचार की हार
जुगत मिलाने के लिए फिर नेता अब तैयार

 


मदन मोहन सक्सेना .



 




Thursday, September 26, 2013

क्रिया कलाप


















 






चाल ,चरित्र और चेहरा की बात करने बाले
आम आदमी के साथ होने का दाबा करने बाले
धर्म निरपेक्ष्ता का राग अलापने बाले
दलित चेतना की बात करने बाले
समाज बाद की दुहाई देने बाले
किसान ,गरीब ,शोषित की याद रखने बाले
सब ने मिलकर
कुछ ही पल में
मुख्य सुचना आयुक्त्य द्वारा
आम जनता को दिए गए जानकारी के अधिकार को
जबरदस्ती छीन लिया
अब जनता नहीं जान  सकेगी
कितनी परेशानी से
जनता के हितैषी
कैसे कैसे क्रिया कलाप
जनता के हित के लिए किया करते हैं .


मदन मोहन सक्सेना

Thursday, September 12, 2013

आँख मिचौली

























आँख मिचौली



जब से मैंने गाँव क्या छोड़ा 
शहर में ठिकाना खोजा 
पता नहीं आजकल 
हर कोई मुझसे 
आँख मिचौली का खेल क्यों खेला  करता है 
जिसकी जब जरुरत होती है 
बह बहाँ से गायब मिलता है 
और जब जिसे जहाँ नहीं होना चाहियें 
जबरदस्ती कब्ज़ा जमा लेता है
कल की ही बात है 
मेरी बहुत दिनों के बात उससे मुलाकात हुयी 
सोचा गिले शिक्बे दूर कर लूँ 
पहले गाँव में तो उससे रोज का मिलना जुलना होता था
जबसे मुंबई में इधर क्या आया 
या कहिये
मुंबई जैसेबड़े शहरों की दीबारों के बीच आकर फँस  गया 
पूछा 
क्या बात है
आजकल आती नहीं हो इधर।
पहले तो हमारे  आंगन भर-भर आती थी
दादी की तरह छत पर पसरी रहती थी हमेशा
तंग दिल पड़ोसियों ने
अपनी इमारतों की दीवार क्या ऊँची की
तुम तो इधर का रास्ता ही भूल गयी
तुम्हें अक्सर सुबह देखता हूं
कि पड़ी रहती हो 
तंगदिल और धनी लोगों
के छज्जों पर
हमारी छत तो
अब तुम्हें भाती ही नहीं है 
क्या करें 
बहुत मुश्किल होती है 
जब कोई अपना (बर्षों से परिचित) 
आपको आपके हालत पर छोड़कर 
चला जाता है 
लेकिन याद रखो
ऊँची इमारतों के ऊँचे लोग 
बड़ी सादगी से लूटते हैं
फिर चाहे वो दौलत  हो या  इज्जत हो
महीनों के  बाद मिली हो 
इसलिए सारी शिकायतें सुना डाली
उसने कुछ बोला नहीं
बस हवा में खुशबु घोल कर 
खिड़की के पीछे चली गई
सोचा कि उसे पकड़कर आगोश में भर लूँ
धत्त तेरी की 
फिर गायब 
ये महानगर की धूप भी न 
बिलकुल तुम पर गई है 
हमेशा आँख मिचौली का खेल खेला  करती है 
बिना ये जाने 
कि इस समय इस का मौका है भी या नहीं 





 मदन मोहन सक्सेना