Thursday, December 29, 2016

किसको आज फुर्सत है किसी की बात सुनने की







किसको आज फुर्सत है किसी की बात सुनने की 
अपने ख्बाबों और ख़यालों  में सभी मशगूल दिखतें हैं

 सबक क्या क्या सिखाता है जीबन का सफ़र यारों
 मुश्किल में बहुत मुश्किल से अपने दोस्त दिखतें हैं

क्यों  सच्ची और दिल की बात ख़बरों में नहीं दिखती 
नहीं लेना हक़ीक़त से  क्यों  मन से आज लिखतें हैं

धर्म देखो कर्म देखो  असर दीखता है पैसों का 
भरोसा हो तो किस पर हो सभी इक जैसे दिखतें हैं

सियासत में न इज्ज़त की ,न मेहनत की  कद्र यारों 
सुहाने स्वप्न और ज़ज्बात यहाँ हर रोज बिकते हैं

दुनियाँ में जिधर देखो हज़ारों रास्ते दीखते 
मंजिल जिनसे मिल जाये वह रास्ते नहीं मिलते 






मदन मोहन सक्सेना

Wednesday, December 28, 2016

गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ


गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ

गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल का ही ग़ज़ल में सन्देश देना चाहता हूँ
ग़ज़ल मरती है नहीं बिश्बास देना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ

ग़ज़ल जीवन का चिरंतन प्राण है या समर्पण का निरापरिमाण है
ग़ज़ल पतझड़ है नहीं फूलों भरा मधुमास है
तृप्ती हो मन की यहाँ ऐसी अनोखी प्यास है
ग़ज़ल के मधुमास में साबन मनाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ

ग़ज़ल में खुशियाँ भरी हैं ग़ज़ल में आंसू भरे
या कि दामन में संजोएँ स्वर्ण के सिक्के खरे
ग़ज़ल के अस्तित्ब को मिटते कभी देखा नहीं
ग़ज़ल के हैं मोल सिक्कों से कभी होते नहीं
ग़ज़ल के दर्पण में ,ग़ज़लों को दिखाना चाहता हूँ


गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ
ग़ज़ल  दिल की बाढ़ है और मन की पीर है
बेबसी में मन से बहता यह नयन का तीर है
ग़ज़ल है भागीरथी और ग़ज़ल जीवन सारथी
ग़ज़ल है पूजा हमारी ग़ज़ल मेरी आरती
ग़ज़ल से ही स्बांस की सरगम बजाना चाहता हूँ
गज़ल गाना चाहता हूँ ,गुनगुनाना चाहता हूँ



मदन मोहन सक्सेना

Monday, December 26, 2016

दिल में जो बसी सूरत सजायेंगे उसे हम यूँ




 तुम्हारी याद जब आती तो मिल जाती ख़ुशी हमको
तुमको पास पायेंगे तो मेरा हाल क्या होगा

तुमसे दूर रह करके तुम्हारी याद आती है
मेरे पास तुम होगे तो यादों का फिर क्या होगा

तुम्हारी मोहनी सूरत तो हर पल आँख में रहती
दिल में जो बसी सूरत उस सूरत का फिर क्या होगा

अपनी हर ख़ुशी हमको अकेली ही लगा करती
तुम्हार साथ जब होगा नजारा ही नया होगा

दिल में जो बसी सूरत सजायेंगे उसे हम यूँ
तुमने उस तरीके से संभारा भी नहीं होगा


दिल में जो बसी सूरत सजायेंगे उसे हम यूँ



मदन  मोहन सक्सेना

Friday, December 23, 2016

आम जनता को क्या मिला




मुझे नहीं पता कि नोटबंदी से
कितना कालाधन आया
कितने सफेदपोश  जेल के अंदर गए
किन्तु
मुझे पता चल गया है
कि
पैसा क्या चीज है
जिसके लिए
रिज़र्व बैंक को धारक को दिया गया अपना बयान
बार बार बदलना पड़ा।
अपने पैसो को पाने के लिये
किसान, गरीब ,मजदूर , बिधार्थी , ब्यापारी , कर्मचारी
सभी को  लाइन में लगना पड़ा।
इस जद्दोजेहद में
कितनो ने अपने जीबन लीला समाप्त कर ली
कितनों ने अपनों को खो दिया
कितनो की शादियाँ टूट गयीं
सरकार को बाहबाही लूटने का मौका मिला
बैंकों के पास खूब पैसा आ गया
कई कम्पनियों पेटयम ,मोबिक्विक ,फ्री चार्ज को अपने पैर पसारने का मौका मिला गया
कालेधन बालों ने नए नए तरीके ईजाद कर लिए अपना धन सफ़ेद करने के लिये
लाख टके का एक सवाल
आम जनता को क्या मिला
सिर्फ इंतज़ार और
मायूसी
हमेशा की तरह


मदन  मोहन सक्सेना





 

Thursday, December 8, 2016

ये सोचकर भ्रम में रहता है



कभी मानब
ये सोचकर भ्रम में रहता है
वह कितना सक्षम  ,समर्थ तथा शक्तिशाली है
जिसने
समुद्र, चाँद ,पर्बतों पर विजय प्राप्त कर ली है
परमाणु के बिषय में
गहन जानकारी प्राप्त कर ली है
भौतिक समृधि की सभी चीजों को प्राप्त कर लिया है
लेकिन शायद
कभी उसने ये विचार भी  किया है
कि वह  बास्तब में कितना
असक्षम , असमर्थ , लाचार  है
अपने माता पिता
जिनका ब्यक्तित्ब
हमारे आचरण ब्यबहार एबम चरित्र का
मूलाधार होता है
उनके चयन करने में
वह  पूरी तरह से असमर्थ होता है
ये मानब के बश में नहीं है
कि अपने माता पिता, परिबार को
अपनी आशानुरूप प्राप्त कर सके
अपना नाम
जो मानब को अक्सर माता पिता से मिलता है
उसकी पसंद नापसंद पर
उसका कोई अधिकार नहीं है
और अपने नाम कि खातिर
ना जानें !सभी क्या क्या करतें हैं
और धर्म
जिसको हम अपना जान लेतें हैं
जिसके सिद्धान्तों , आदर्शों ,परम्पराओं को
मानब मानने के लिए बाध्य है
उसी धरम कि ख़ातिर
ना जानें ? कितनें मंदिर मस्जिद गुरुदारें जलाएं जातें हैं
धर्म का चयन करनें में
किसी मानब कि कुछ भी नहीं चलती है
और ये अपना शरीर
जिसके साथ लगता है ,अपना अटूट सम्बन्ध है
किन्तु उसमें होने बाले
क्रमिक परिबर्तनों को
मानब अपनी आशानुरूप
परबर्तित नहीं कर सकता
ना ही ये शरीर
मानब कि किसी बात को मानने के लिए बाध्य है
मानब मन
जो बर्तमान को छोड़कर
अतीत तथा भबिष्य कि संदिग्ध गलियों में भटकत्ता रहता है
तथा हर पल
अपने को छोड़कर
दूसरों के विषय में ,सोचने में ब्यस्त रहता है
अपनी आँखें
जिनके पास अपनी ओर देखने का वक़्त नहीं है
सिबाय दूसरी ओर देखने के
और इसी में पूरा जीबन ब्यतीत होता है
लेकिन प्रत्येक मानब के मन में
ये भ्रम रहता है कि
मानब कितना
सक्षम  ,समर्थ तथा शक्तिशाली है

मदन मोहन सक्सेना

Tuesday, December 6, 2016

गज़ल (सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना)

गज़ल (सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना)


जिसे चाहा उसे छीना , जो पाया है सहेजा है
उम्र बीती है लेने में ,मगर फिर शून्यता क्यों हैं
सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना
देने में ख़ुशी जो है, कोई बिरला सीखता क्यों है
कहने को तो , आँखों से नजर आता सभी को है
अक्सर प्यार में ,मन से मुझे फिर दीखता क्यों है
दिल भी यार पागल है ,ना जाने दीन दुनिया को
दिल से दिल की बातों पर आखिर रीझता क्यों है
आबाजों की महफ़िल में दिल की कौन सुनता है
सही चुपचाप रहता है और झूठा चीखता क्यों है

गज़ल (सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना)

मदन मोहन सक्सेना

Monday, November 28, 2016

देकर दुआएं आज फिर हम पर सितम बो कर गए.


दुनिया  बालों की हम पर जब से इनायत हो गयी
उस रोज से अपनी जख्म खाने की आदत हो गयी

शोहरत  की बुलंदी में ,न खुद से हम हुए वाकिफ़
गुमनामी में अपनेपन की हिफाज़त हो गयी

मर्ज ऐ  इश्क को सबने ,गुनाह जाना ज़माने में
अपनी नज़रों में मुहब्बत क्यों इबादत हो गयी

देकर दुआएं आज फिर हम पर सितम बो कर गए.
अब जिंदगी जीना , अपने लिए क़यामत हो गयी

दुनिया  बालों की हम पर जब से इनायत हो गयी
उस रोज से अपनी जख्म खाने की आदत हो गयी


मदन मोहन सक्सेना

Thursday, October 27, 2016

मैं उजाला और दीपावली






बह हमसे बोले हँसकर कि आज है दीवाली
उदास क्यों है दीखता क्यों बजा रहा नहीं ताली
मैं कैसें उनसे बोलूँ  कि जेब मेरी ख़ाली
जब हाथ भी बंधें हो कैसें बजाऊँ ताली
बह  बोले मुस्कराके धन से क्यों न खेलते तुम
देखो तो मेरी ओर दुखों को क्यों झेलते तुम
इन्सान कर्म पूजा सब को धन से ही तोलते हम
जिसके ना पास दौलत उससे न बोलते हम
मैंने जो देखा उनको खड़ें बह  मुस्करा रहे थे
दीवाली के दिन तो बह दौलत लुटा रहे थे
मैनें कहा ,सच्चाई मेरी पूजा इंसानियत से नाता
तुम जो कुछ भी कह रहे हो ,नहीं है मुझको भाता
वह   बोले हमसे हसकर ,कहता हूँ बह  तुम सुन लो
दुनियां में मिलता सब कुछ खुशियों से दामन भर लो
बातों में है क्या रक्खा मौके पे बात बदल लो
पैसों कि खातिर दुनियां में सब से तुम सौदा कर लो
वह  बोले हमसे हंसकर ,हकीकत भी तो यही है
इंसानों क़ी है दुनिया पर इंसानियत नहीं है
तुमको लगेगा ऐसा कि सब आपस में मिले हैं
पर ये न दिख सकेगा दिल में शिक्बे और गिले हैं
मैनें जो उनसे कहा क्या ,क्या कह जा रहे हैं
जो कुछ भी तुमने बोला ना हम समझ पा रहे हैं
मेरी नजर से देखो दुनियाँ  में प्यार ही मिलेगा
दौलत का नशा झूठा पल भर में ये छटेगा
दौलत है आनी जानी ये तो तो सब ही जानतें हैं
ये प्यार भरी दुनियां बस हम प्यार मानतें है
प्रेम के दीपक, तुम जब हर दिल में जलाओगे
सुख शांति समृधि की सच्ची दौलत तुम पाओगे
वह  बात सुन कर बोले ,यहाँ हर रोज है दीवाली
इन्सान की इस दुनियां का बस इश्वर है माली
बह  मुस्करा के बोले अब हम तो समझ गएँ हैं
प्रेम के दीपक भी मेरे दिल में जल गए हैं
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दिवाली का पर्व है फिर अँधेरे में हम क्यों रहें
चलो हम अपने अहम् को जलाकर रौशनी कर लें



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दिवाली का पर्व है अँधेरा अब नहीं भाता मुझे
आज फिर मैंने तेरी याद के दीपक जला  लिए



दीपाबली शुभ हो


मैं उजाला और दीपावली
मदन  मोहन सक्सेना 

Monday, October 17, 2016

पति पत्नी और करबाचौथ












कल यानि १९ अक्टूबर के दिन करवाचौथ पर  भारतबर्ष में सुहागिनें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए चाँद दिखने तक निर्जला उपबास रखती है . पति पत्नी का रिश्ता समस्त उतार चदाबों   के साथ इस धरती पर सबसे जरुरी और पवित्र रिश्ता है .आज के इस दौर में जब सब लोग एक दुसरे की जान लेने पर तुलें हुयें हों तो आजकल  पत्नी का उपवास रखना किसी अजूबे से कम नहीं हैं।  


मेरी  पत्नी (शिवानी सक्सेना )को समर्न्पित एक कबिता :


अर्पण आज तुमको हैं जीवन भर की सब खुशियाँ 

पल भर भी न तुम हमसे जीवन में जुदा होना
रहना तुम सदा मेरे दिल में दिल में ही खुदा बनकर 
ना हमसे दूर जाना तुम और ना हमसे खफा होना 

अपनी तो तमन्ना है सदा हर पल ही मुस्काओ 
सदा तुम पास हो मेरे ,ना हमसे दूर हो पाओ 
तुम्हारे साथ जीना है तुम्हारें साथ मरना है 
तुम्हारा साथ काफी हैं बाकि फिर  क्या करना है

अनोखा प्यार का बंधन इसे तुम तोड़ ना देना 
पराया जान हमको अकेला छोड़ ना देना 
रहकर दूर तुमसे हम जियें तो बो सजा होगी 
ना पायें गर तुम्हें दिल में तो ये मेरी सजा होगी 








पति पत्नी और करबाचौथ

मदन मोहन सक्सेना  



Tuesday, September 20, 2016

आखिर कब तक हम सहें


आखिर कब तक  हम सहें

फिर एक बार देश ने आंतकी हमला झेला
फिर एक बार कई सैनिक शहीद हो गए
 फिर एक बार परिबारों ने अपनोँ  को खोने का दंश झेला
फिर एक बार गृह , रक्षा मंत्री ने घटना स्थल का दौरा किया
फिर एक बार मंत्रियों ने प्रधान मंत्री को रिपोर्ट दी
फिर एक बार हाई लेवल मीटिंग की गयी  

फिर एक बार प्रधान मंत्री ने राष्ट्रपति को अबगत कराया
फिर एक बार सभी दलों ने घटना की निंदा की
फिर एक बार मीडिया में चर्चा हुयी
फिर एक बार पाक को अलग थलग करने की बात की गयी
फिर एक बार पाक से ब्यापारिक ,द्विपक्षीय रिश्तें ख़त्म करने की धमकी दी गयी
फिर एक बार पाक से ट्रेन और बस सेवा बंद करने की बात की गयी
फिर एक बार प्रधान मंत्री ने देश को भरोसा दिलाया कि  गुनाहगार को बख्शा नहीं जायेगा
और
फिर
फिर फिर
फिर फिर फिर
शहीद परिबारों ने कठोर कार्यबाही की मांग की।



आखिर कब तक  हम सहें

मदन मोहन सक्सेना